Wednesday, March 11, 2009

दिल ढूँढता है, फ़िर वही फुरसत के रात दिन



दिल ढूँढता है, फ़िर वही फुरसत के रात दिन
बैठे रहे तसव्वुर-ये-जाना किए हुए

जाडों की नर्म धुप और आँगन में लेट कर
आंखों पे खिंच कर तेरे दामन के साए को
औंधे पड़े रहे कभी करवट लिए हुए

या गम्रीयों की रात जो पूरावाईयाँ चले
ठण्डी सफ़ेद चादरों पे जागे देर तक
तारों को देखते रहे छत पर पड़े हुए

बर्फीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूंजती हुयी, खामोशियाँ सूने
आंखों में भीगे भीगे से लम्हे लिए हुए

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