Wednesday, March 11, 2009

चेहरा हैं या चाँद खिला है, जुल्फ घनेरी शाम हैं क्या



चेहरा हैं या चाँद खिला है, जुल्फ घनेरी शाम हैं क्या
सागर जैसी आन्खानेवाली ये तो बता तेरा नाम हैं क्या?

तू क्या जाने तेरी खातिर कितना हैं बेताब ये दिल
तू क्या जाने देख रहा हैं कैसे कैसे ख्वाब ये दिल
दिल कहता है, तू हैं यहाँ तो जाता लम्हा थम जाए
वक्त का डराया बहते बहते, इस मंजर में जम जाए
तू ने दीवाना दिल को बनाया, इस दिल पर इल्जाम हैं क्या

आज मैं तुज से दूरी सही और तू मुज़ से अनजान सही
तेरा साथ नहीं पाऊँ तो खैर तेरा अरमां सही
ये अरमां है, शोर नहीं हो, खामोशी के मेले होर
इस दुनिया में कोई नहीं हो, हम दोनों ही अकेले हो
तेरे सपने देख रहा, और मेरा अब काम हैं क्या

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