Wednesday, March 11, 2009

लगी आज सावन की फ़िर वो झड़ी है



लगी आज सावन की, फ़िर वो झड़ी है
वही आग सीने में, फ़िर जल पडी हैं

कुछ एसे ही दिन थे, वो जब हम मिले थे
चमन में नही, फूल दिल में खिले थे
वही तो हैं मौसम मगर रुत नहीं वो
मेरे साथ बरसात भी रो पडी है

कोई काश दिल पे, ज़रा हाथ रख दे
मेरे दिल के टुकडों को, एक साथ रख दे
मगर ये हैं ख़्वाबों ख्यालों की बातें
कभी टूट कर चीज कोई जुडी हैं

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