Tuesday, March 10, 2009

सिलसिला यह चाहत का, ना मैंने बुझने दिया



मौसम ने ली अंगडाई, लहराके बरखा फिर छाई
झोंका हवा का आयेगा, और यह दिया बुझ जायेगा

सिलसिला यह चाहत का, ना मैंने बुझने दिया
ओ पिया, ये दिया ना बुझा हैं, ना बुझेगा मेरी चाहत का दिया
मेरे पिया अब आजा रे मेरे पिया
इस दिये संग जल रहा मेरा रोम रोम और जिया

फासला था दूरी थी, था जुदाई का आलम
इंतजार में नजरें थी, और तुम वहा थे
झिलमिलाते जगमगाते खुशियों में झुमकर
और यहा जल रहे थे हम

फिर से बादल गरजा हैं, गरज गरज के बरसा हैं
घुम के तुफान आया हैं पर तुझ को बुझा नहीं पाया हैं
ओ पिया, यह दिया चाहे जितना सताये तुझे यह सावन यह हवा और यह बिजलीयाँ
मेरे पिया अब आजा रे मेरे पिया

देखो ये पगली दिवानी, दुनियाँ से हैं यह अंजानी
झोंका हवा का आयेगा और इस का पिया संग लायेगा
सिलसिला यह चाहत का ना दिल से बुझने दिया

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